बरसात का ये मौसम, कितना हसीन है!
धरती गगन का संगम, कितना हसीन है!
जाती नज़र जहाँ तक, बौछार की बहार
बूँदों का नृत्य छम-छम, कितना हसीन है!
बच्चों के हाथ में हैं, कागज़ की किश्तियाँ
फिर भीगने का ये क्रम, कितना हसीन है!
विहगों की रागिनी है, कोयल की कूक भी
उपवन का रूप अनुपम, कितना हसीन है!
झूलों पे पींग भरतीं, इठलातीं तरुणियाँ
रस-रूप का समागम, कितना हसीन है!
मित्रों का साथ हो तो, आनंद दो गुना
नगमें सुनाता आलम, कितना हसीन है!
हर मन का मैल मेटे, सुखदाई मानसून
हर मन का नेक हमदम, कितना हसीन है!
-कल्पना रामानी
5 comments:
आपकी यह रचना कल गुरुवार (04-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
टेबल बरामदे का , ठंडाती गर्म चाय
यादों का शोर मद्धम कितना हसीन है
जाती नज़र जहाँ तक, बौछार की बहार,
बूँदों का नृत्य छम-छम, कितना हसीन है!..
बहुत ही लाजवाब ... नए काफिये बाखूबी इस्तेमाल किये हैं आपने ... मज़ा आ गया ...
bahut aanand daayak hai ye aapki gazal !
Bahut khubsurat rachna
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