भर्त्सना के भाव भर, कितनी भला कटुता लिखें?
नर पिशाचों के लिए, हो काल वो रचना लिखें।
नारियों का मान मर्दन, कर रहे जो का-पुरुष
न्याय पृष्ठों पर उन्हें, ज़िंदा नहीं मुर्दा लिखें।
रौंदते मासूमियत, लक़दक़ मुखौटे ओढ़कर
अक्स हर दीवार पर, कालिख पुता उनका लिखें।
पशु कहें, किन्नर कहें, या दुष्ट दानव घृष्टतम
फर्क उनको क्या भला, जो नाम, जो ओहदा लिखें।
पापियों के बोझ से, फटती नहीं अब ये धरा
खोद कब्रें, कर दफन, कोरा कफन टुकड़ा लिखें।
हों बहिष्कृत परिजनों से, और धिक्कृत हर गली
डूब जिसमें खुद मरें वो, शर्म का दरिया लिखें।
'कल्पना' थमने न पाए, अब क़लम यह बेटियों!
हों न वर्धित वंश, उनके नाश को न्यौता लिखें
-कल्पना रामानी
11 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (22-05-2013) के कितनी कटुता लिखे .......हर तरफ बबाल ही बबाल --- बुधवारीय चर्चा -1252 पर भी होगी!
सादर...!
आक्रोश से भरी रचना ..कुछ ऐसा ही लिखना पड़ेगा ..सादर बधाई के साथ
पशु कहें, किन्नर कहें, या दुष्ट दानव घृष्टतम,
फर्क उनको क्या भला, जो नाम, जो ओहदा लिखें।-सही कहा आपने ,बहुत अच्छा प्रस्तुति !
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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जबरदस्त आक्रोश ..मैं भी सहमत हूँ ..बधाई के साथ
इस ओज मई रचना के माध्यम से मुझे समाज की बुराइयों के साथ 'स्वयं' में भी व्याप्त बुराइयों की और इंगित करने के लिये बल मिला |
वधाई!धन्यवाद!!
Virendra Kumar SharmaMay 22, 2013 at 5:54 PM
कितनी भला कटुता लिखें(गजल)
भर्त्सना के भाव भर, कितनी भला कटुता लिखें?
नर पिशाचों के लिए, हो काल वो रचना लिखें।
नारियों का मान मर्दन, कर रहे जो का-पुरुष,
न्याय पृष्ठों पर उन्हें, ज़िंदा नहीं मुर्दा लिखें।
रौंदते मासूमियत, लक़दक़ मुखौटे ओढ़कर,
अक्स हर दीवार पर, कालिख पुता उनका लिखें।
पशु कहें, किन्नर कहें, या दुष्ट दानव घृष्टतम,
फर्क उनको क्या भला, जो नाम, जो ओहदा लिखें।
पापियों के बोझ से, फटती नहीं अब ये धरा
खोद कब्रें, कर दफन, कोरा कफन टुकड़ा लिखें।
हों बहिष्कृत परिजनों से, और धिक्कृत हर गली,
डूब जिसमें खुद मरें वो, शर्म का दरिया लिखें।
कब तलक घिसते रहेंगे, रक्त भरकर लेखनी,
हों न वर्धित वंश, उनके नाश को न्यौता लिखें।
---कल्पना रामानी
हमारे वक्त के अव पतन का आईना है ये गजल ,
गिर गए कितना ये कहती हांफती है यह गजल .
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पशु कहें, किन्नर कहें, या दुष्ट दानव घृष्टतम,
फर्क उनको क्या भला, जो नाम, जो ओहदा लिखें।
एकदम सही लिखा है आपने...सामयिक रचना...गजल..बधाई हो आपको
बहुत गज़ब की ग़ज़ल
आपकी लेखनी पर कोई टिपण्णी नहीं. क्यूँ बार बार उत्क्रिस्ट लिखूं. कोई गलती नहीं, मर्यादित कला ----मेरे पास ज्ञान नहीं है इस तरह की रचना को परखने के लिए.
नारियों का मान मर्दन, कर रहे जो का-पुरुष,
न्याय पृष्ठों पर उन्हें, ज़िंदा नहीं मुर्दा लिखें
इस शेर में थोड़ी कमी दिखी, जब से श्रृष्टि बनी नारियों ने क्यूँ नहीं अपने आपको समान अवसर के लिए लड़ाई लड़ी. यह विवाद का बिषय है. मैंने एक पेज फेसबुक पर बनाया है फ्रीडम ऑफ़ वीमेन. उसमे हर आयाम से विवेचना की है . आप अगर चाहें तो उसे पढ़ सकते हैं और किसी बात से सहमत नहीं तो आप सुझाब दे सकती है. मैं आदर करूँगा. क्यूंकि मेरे जीवन में दो हीं प्रशन परेशां किये हुए है एक गरीब और आमिर की बढती खाई, दूसरी नारी का सम्मान .
bahut badhiya
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