रंग
लाए व्योम से भीगा हुआ फागुन सखी।
भूमि
पर हर जीव से हँसकर मिला फागुन सखी।
ऋतु
रँगीली,
मन
नशीला,
भंग
का प्याला लिए
पाँव
घुँघरू बाँधकर,
बहका
रहा फागुन सखी।
वन-पलाशों
में रचाईं धूप ने रंगोलियाँ
विहग
वृंदों,
चौपदों
का मन हुआ फागुन सखी।
उर
उमंगें हैं उमंगित, जी जनों का झूम उठा
छप्परों-छानों-छतों
पर,
छा
गया फागुन सखी।
आम
रस चखने चली अमराइयों में कोकिला
कूक
की उसकी अदा पर,
है
फिदा फागुन सखी
हो
रही घर घर में पूजा होलिका की रीत से
“कल्पना” संदेश देता जीत का फागुन सखी
-कल्पना रामानी
2 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (26-03-2016) को "होली तो अब होली" (चर्चा अंक - 2293) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर प्रस्तुति
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