रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Monday 8 June 2015

ऐसा भी क्या

चित्र से काव्य तक
दाँव लगाना, ऐसा भी क्या!
खुद बिक जाना, ऐसा भी क्या!

दुआ बुजुर्गों की धकियाकर
देव मनाना, ऐसा भी क्या

जब-जब मुद्दे मूँछ मरोड़ें
सिर खुजलाना ऐसा भी क्या!

दाग दबाकर, अच्छे दिन की
मुहर लगाना, ऐसा भी क्या!

रचना फ्री सहयोग राशि भी?

दे छपवाना, ऐसा भी क्या!

मित्रों का मन, बिन जाने ही 
टैग लगाना, ऐसा भी क्या!

परिणय के बिन, जायज 'लिव-इन'   
नया ज़माना, ऐसा भी क्या!

टूटे चाहे साँस, न छूटे
मय-मयखाना, ऐसा भी क्या!

निज-नारी का नूर बुझाकर
पर की रिझाना, ऐसा भी क्या!

प्रश्न कल्पना हल चाहें तो  
आँख चुराना, ऐसा भी क्या!

-कल्पना रामानी 

4 comments:

Unknown said...

बहुत सुन्दर गजल रचना वाह आपकी कलम में जादू है..भीतर अंदर तक पंहुच जातीं है आपकी भावाव्यक्ति ...नमन ...

कल्पना रामानी said...

आप यहाँ तक आईं बहुत अच्छा लगा, बहुत धन्यवाद आपका

Sheshnath Prasad said...

सुंदर

Unknown said...


लाजवाब सच्चाई!!

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