रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Tuesday, 10 March 2015

खुशबू से महकाओ मन

खुशबू से महकाओ मन, फूलों की तरहा
रंगों से भर दो जीवन, बागों की तरहा

कभी न बनकर बाँध, रोकना बहती धारा  
सतत प्रवाहित रहो धार-नदियों की तरहा

कितना प्यार जगत में, देखो थोड़ा नमकर  
अकड़न, ऐंठन छोड़, फलित डालों की तरहा   

ऋतुएँ रूठें, करो न ऐसी खल करतूतें
रौंद रहे क्यों भू को, यमदूतों की तरहा

किया प्रदूषण अब तक अर्पित नीर-पवन को
बनो चमन मन! हरो दोष, पेड़ों की तरहा 

अँधियारों को राह दिखाओ जुगनू बनकर
उजियारों से तम काटो तारों की तरहा

बोल लबों से कभी न फूटें अंगारे बन
मित्र! चहकते रहो सदा चिड़ियों की तरहा    

बात पुरानी कहने का अंदाज़ नया हो  
ज्यों महफिल तुमको गाए, गज़लों की तरहा

मनुष बनाकर तुम्हें ईश ने भू पर भेजा
कर्म “कल्पना” फिर क्यों हों पशुओं की तरहा 

-कल्पना रामानी  

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