जो रस्मों को मन से माने, पावन होती प्रीत वही तो!
जीवन भर जो साथ निभाए, सच्चा होता मीत वही तो!
रूढ़ पुरानी परम्पराएँ, मानें हम, है नहीं ज़रूरी।
जो समाज को नई दिशा दे, प्रचलित होती रीत वही तो!
मंदिर-मंदिर चढ़े चढ़ावा, भरे हुओं की भरती झोली।
जो भूखों की भरे झोलियाँ, होता कर्म पुनीत वही तो!
ऐसा कोई हुआ न हाकिम, जो जग में हर बाज़ी जीता
बाद हार के जो हासिल हो, सुखदाई है जीत वही तो!
भाव बिना है कविता फीकी, बिना सुरीले बोल, तराने।
जो तन-मन को करे तरंगित मधुरिम है संगीत वही तो!
यों तो मिलती नेक नसीहत, भूलें जो बीता दुखदाई,
संग जिये पर जिसके पल-पल, होता याद अतीत वही तो!
- कल्पना रामानी
2 comments:
बहुत सुन्दर गज़ल।
सुंदर गजल.
Post a Comment