रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Saturday 4 October 2014

फूल हमेशा बगिया में ही...

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फूल हमेशा बगिया में ही, प्यारे लगते।
नीले अंबर में ज्यों चाँद-सितारे लगते।
 
बिन फूलों के फुलवारी है एक बाँझ सी
गोद भरे तो माँ के राजदुलारे लगते।
 
हर आँगन में हरा-भरा यदि गुलशन होता
महके-महके, गलियाँ औ चौबारे लगते।
 
दिन बिखराता रंग, रैन ले आती खुशबू
ओस कणों के संग सुखद भिनसारे लगते।
 
फूल, तितलियाँ, भँवरे, झूले, नन्हें बालक
मन-भावन ये सारे, नूर-नज़ारे लगते।
 
मिल बैठें, बतियाएँ इनसे, जी चाहे जब
स्वागत में ये पल-पल बाँह पसारे लगते।
 
घर से बेघर कभी कल्पना करें न इनको
तनहाई में ये ही खास हमारे लगते। 

- कल्पना रामानी  

4 comments:

nayee dunia said...

bahut sundar ...

Dr. Rajeev K. Upadhyay said...

बहुत सुन्दर गज़ल। घर से बेघर करने वाली पक्ति शानदार है। स्वयं शून्य

प्रेम सरोवर said...

बहुत ही उम्दा गजल।मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

Unknown said...

bahut khoob

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