मन पतंगों संग उड़ना चाहता है।
लग रहा मौसम बदलना चाहता है।
बढ़ चले दिन, कद हुआ कम, शीत ऋतु का
धीरे-धीरे तन पिघलना चाहता है।
चलते-चलते रुख बदल उत्तर दिशा को
सूर्य बन-ठन कर टहलना चाहता है।
काँपता था बर्फ बारिश में जो शब भर
भोर को वो गुल निरखना चाहता है।
नीड़ में दुबका पखेरू मुक्त होकर
डाली-डाली पर विचरना चाहता है।
हो चला शोणित तरल, जीवन सरलतम।
हर कदम आगे को बढ़ना चाहता है।
ज्यों घुले गुड़-तिल, मिले दिल, मुग्ध जन-जन
प्रेम-रस का स्वाद चखना चाहता है।
- कल्पना रामानी
3 comments:
बहुत उम्दा ग़ज़ल !
नई पोस्ट सर्दी का मौसम!
नई पोस्ट लघु कथा
बहुत ही सुन्दर और उम्दा ग़ज़ल कि प्रस्तुति,आभार आदरेया।
उम्दा चर्चा |
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