जो जुटाते अन्न, फाकों की सज़ा उनके लिए।
बो रहे जीवन, मगर जीवित चिता उनके लिए।
सींच हर उद्यान को, जो हाथ करते स्वर्ग सम
सींच हर उद्यान को, जो हाथ करते स्वर्ग सम
नालियों के नर्क की, दूषित हवा उनके लिए।
जोड़ते जो मंज़िलें, माथे तगारी बोझ धर
तंग चालों बीच जुड़ता, घोंसला उनके लिए।
झाड़ते हैं हर गली, हर रास्ते की धूल जो
धूल ही होती दवा है, या दुआ उनके लिए।
गाँव वालों के सभी हक़, ले गए लोभी शहर
सिर्फ सूनी गागरी, ठंडा तवा उनके लिए।
क्या पढ़ेंगे दीन कविता, गीत या कोई गजल
भूख के भावों भरा, कोरा सफ़ा उनके लिए।
बेरहम शासन तले जो, घुट रहा है आम जन
रहनुमाओं ने अभी तक, क्या किया उनके लिए।
-कल्पना रामानी
2 comments:
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क्या पढ़ेंगे दीन कविता, गीत या कोई गजल,
भूख के भावों भरा, कोरा सफ़ा उनके लिए।
बेरहम शासन तले जो, घुट रहा है आम जन,
रहनुमाओं ने अभी तक, क्या किया उनके लिए।
वाह बहुत खूब.......
बहुत ही मार्मिकता से सत्य का प्रस्तुतीकरण किया आपने दीदी जी
बहुत सुन्दर कृति आपकी
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