रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Saturday, 19 March 2016

गुलाबी-गुलाबी हुआ आसमाँ है

उमंगों ने बाँधा कुछ ऐसा समाँ है
कि रंगों में डूबा ये सारा जहाँ है

जले होलिका में कपट क्लेश सारे
महज मित्रता का ही आलम यहाँ है

हुई एकजुट है, अमीरी गरीबी
नहीं फर्क का कोई नामोनिशाँ हैं

गले प्यार से मिल रहे राम-रहमत
न अब दूरी उनके दिलों-दरमियाँ है

सँवरकर रँगीले पलाशों का वन से  
शहर को चला झूमता कारवाँ है

उमर से शिकायत भी होगी तो होगी 
मगर आज के दिन तो हर दिल जवाँ है

गली गाँव में गेर, के हैं नज़ारे
तो शहरों को होली-मिलन पर गुमाँ है 

यों फागुन ने हर मन के दागों को धोया
गुलाबी-गुलाबी, ज़मीं-आसमाँ है 

विदेशों में भी कल्पनाखेल होली
प्रवासी समझते कि भारत यहाँ है

-कल्पना रामानी  

1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (20-03-2016) को "लौट आओ नन्ही गौरेया" (चर्चा अंक - 2288) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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