रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Saturday 18 October 2014

सखी री दीप जला




कर सोलह शृंगार, सखी री दीप जला।
पावन है त्यौहार, सखी री दीप जला।
 
तम-विभावरी, झिलमिला रही, पूनम सी।
ज्योतित है संसार, सखी री दीप जला।
 
भाव भावना, पूर्ण अल्पना, शोभित हो।
बाँधो वंदनवार, सखी री दीप जला।
 
रिद्धि-सिद्धि के सुख-समृद्धि के, द्वार खुलें।
घर-घर पनपे प्यार, सखी री दीप जला।
 
पद्मवासिनी, वरदा लक्ष्मी, द्वार खड़ी।
कर स्वागत सत्कार, सखी री दीप जला।
 
धैर्य-ध्यान से, विधि विधान से, कर-पूजन।
मंगल मंत्र उचार, सखी री दीप जला।
 
सतत साल भर, हों प्रकाशमय, जन-जन के।
आँगन, देहरी, द्वार, सखी री दीप जला।
 
कर्म-ज्ञान के, धर्म-दान के, रोशन हों।
हर मन में सुविचार, सखी री दीप जला।
 
चिर उजियाली, शुभ दीवाली, फिर लाए।
अपनों के उपहार, सखी री दीप जला।

- कल्पना रामानी  

4 comments:

Darshan jangra said...


आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार- 19/10/2014 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 36
पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं......

Meena Pathak said...

बहुत सुन्दर

RAKESH KUMAR SRIVASTAVA 'RAHI' said...

अति-सुन्दर जज़्बात !

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