बदलती ऋतु की रागिनी, सुना रही फुहार है।
उड़ी सुगंध बाग में, बुला रही फुहार है।
कहीं घटा घनी-घनी, कहीं पे धूप है खिली
लुका-छुपी के खेल से, रिझा रही फुहार है।
अमा है चाँद रात भी, है साँवली प्रभात भी
अनूप रूप सृष्टि का, दिखा रही फुहार है।
वनों में पेड़-पेड़ पर, पखेरुओं को छेड़कर
बुलंद छंद कान में, सुना रही फुहार है।
चमन के पात-पात पर, कली-कली के गात पर
बिसात बूँद-बूँद से, बिछा रही फुहार है।
पहाड़ पर कछार में, नदी-नदीश धार में
जहाँ-तहाँ बहार में, नहा रही फुहार है।
सहर्ष होगी बोवनी, भरेगी गोद भूमि की
किसान संग-संग हल, चला रही फुहार है।
मयूर नृत्य में मगन, कुहुक रही है कोकिला
सुरों में सुर मिलाके गीत, गा रही फुहार है।
झुला रही है शाख पे, सहेलियों को झूलना
घरों में पर्व प्यार से, मना रही हैं फुहार है।
-कल्पना रामानी
3 comments:
आदरेया प्रकृति की सुहानी छटा बिखेरती हुई आपकी यह सुन्दर रचना 'निर्झर टाइम्स' पर संकलित की गई है।
कृपया 01/09/2013 के अंक का अवलोकन http://nirjhar.times.blogspot.in पर करें,आपकी प्रतिक्रिया सादर आमन्त्रित है।
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
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आप अभी तक हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {साप्ताहिक चर्चामंच} की चर्चा हम-भी-जिद-के-पक्के-है -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-002 मे शामिल नही हुए क्या.... कृपया पधारें, हम आपका सह्य दिल से स्वागत करता है। इस साइट में शामिल हों कर अनमोल प्रतिक्रिया व्यक्त करना न भूलें। आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आगर आपको चर्चा पसंद आये तो इस साइट में शामिल हों कर आपना योगदान देना ना भूलें। सादर ....ललित चाहार
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
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