रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Tuesday, 9 July 2013

विश्व में आका हमारे यश कमाना चाहते//गज़ल//





















वे सुना है चाँद पर बस्ती बसाना चाहते।
विश्व में आका हमारे यश कमाना चाहते।
 
लात सीनों पर जनों के, रख चढ़े  थे  सीढ़ियाँ,
शीश पर अब पाँव रख, आकाश पाना चाहते।
 
भर लिए गोदाम लेकिन, पेट भरता ही नहीं,
दीन-दुखियों को निवाला, अब बनाना  चाहते।
 
बाँटते वैसाखियाँ, जन-जन को पहले कर अपंग,
दर्द देकर बेरहम, मरहम लगाना चाहते।
 
खूब दोहन कर निचोड़ा, उर्वरा भू को प्रथम,   
अब जनों के कंठ ही, शायद सुखाना चाहते।  
 
शहरियत से बाँधकर, बँधुआ किये ग्रामीण जन,  
निर्दयी, गाँवों की अब, जड़ ही मिटाना चाहते।  
 
सिर चढ़ी अंग्रेज़ियत, देशी  दफन कर बोलियाँ,
बदनियत फिर से, गुलामी को बुलाना चाहते।
 
देश जाए या रसातल, या हो दुश्मन के अधीन,
दे हवा आतंक को, कुर्सी बचाना चाहते।
 
कोशिशें नापाक उनकी, खाक कर दें "कल्पना",
खाक में जो स्वत्व जन-जन का मिलाना चाहते। 




-----कल्पना रामानी

10 comments:

shashi purwar said...

बेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (10-07-2013) के .. !! निकलना होगा विजेता बनकर ......रिश्तो के मकडजाल से ....!१३०२ ,बुधवारीय चर्चा मंच अंक-१३०२ पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार

कविता रावत said...

कोशिशें नापाक उनकी, खाक कर दें साथियों,
खाक में जो स्वत्व जन-जन का मिलाना चाहते।
..ऐसी ही हुँकार सबके मन में उठे तो देश हमारा सबसे ऊपर होगा ..
बहुत सुन्दर प्रेरक रचना

Kailash Sharma said...

बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...

Naveen Mani Tripathi said...

bahut khoob hr sher lajbab

रश्मि शर्मा said...

बहुत सुंदर अभि‍व्‍यक्‍ति

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब .. हर शेर कटाक्ष है इस व्यवस्था पर ...
लाजवाब गज़ल ...

surenderpal vaidya said...

देश के नेताओं की गद्दारी को मुखरता से बयान करती बढ़िया गज़ल के लिए हार्दिक बधाई कल्पना रामानी जी।

Anonymous said...

ख़ूबसूरत प्रस्तुति

इन्टरनेट पर करें बड़ी फाइल शेयर (5GB तक )

Vindu babu said...

आदरेया अपकी यह प्रभावशाली प्रस्तुति को 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक किया गया है।
कृपया http://nirjhar.times.blogspot.in पर पधारें,आपकी प्रतिक्रिया सादर आमंत्रित है।
सादर

Onkar said...

सुन्दर प्रस्तुति

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