रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Monday, 30 December 2013

और मौसम अचानक सुहाना हुआ




तुमसे नज़रें मिलीं, मन मिलाना हुआ। 
और मौसम अचानक सुहाना हुआ। 

साथ जीने के, मरने के वादे हुए
एक छोटा सुखद आशियाना हुआ।
 
वक्त चलता रहा, दिन गुजरते रहे
प्यार का वो नशा कुछ पुराना हुआ।
 
रंग बदले तुम्हारे, हुई दंग मैं
दूर रहने का हर दिन बहाना हुआ।

तुम तो ऐसे न थे, बेवफा किसलिए
मेरे दिल से अलग भी ठिकाना हुआ।

 खिलखिलाते वे दिन, हँस-हँसाते वे दिन
तुम तो भूले, न मुझसे भुलाना हुआ।
 
लौट आओ तुम्हें, ‘कल्पनाहै कसम
मान लूँगी कि जो भी हुआ, ना हुआ। 


-कल्पना रामानी

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