तुमसे नज़रें मिलीं, मन मिलाना हुआ।
और मौसम अचानक सुहाना हुआ।
साथ जीने के, मरने के वादे हुए
एक छोटा सुखद आशियाना हुआ।
वक्त चलता रहा, दिन गुजरते रहे
प्यार का वो नशा कुछ पुराना हुआ।
रंग बदले तुम्हारे, हुई दंग मैं
दूर रहने का हर दिन बहाना हुआ।
तुम तो ऐसे न थे, बेवफा किसलिए
मेरे दिल से अलग भी ठिकाना हुआ।
खिलखिलाते वे दिन, हँस-हँसाते वे दिन
तुम तो भूले, न मुझसे भुलाना हुआ।
लौट आओ तुम्हें, ‘कल्पना’ है कसम
मान लूँगी कि जो भी हुआ, ना हुआ।
-कल्पना रामानी
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सुन्दर ग़ज़ल
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