रचना चोरों की शामत
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Wednesday, 1 January 2014
नूतन साल आया
पूर्ण कर अरमान, नूतन साल आया।
जाग रे इंसान, नूतन साल आया।
ख़ुशबुओं से तर हुईं बहती हवाएँ
थम गए तूफान, नूतन साल आया।
गत भुलाकर खोल दे आगत के रस्ते
छेड़ दे जय गान, नूतन साल आया।
कर विसर्जित अस्थियाँ गम के क्षणों की
बाँटकर मुस्कान, नूतन साल आया।
मन ये तेरा अब किसी भी लोभ मद से
हो न पाए म्लान, नूतन साल आया।
रब रहा है पूछ तेरी, क्या रज़ा है
माँग ले वरदान, नूतन साल आया।
आसमां आतुर तुझे हिय से लगाने
चढ़ नए सोपान, नूतन साल आया।
यत्न कर प्राणी, कहीं तेरी मनुजता
खो न दे पहचान, नूतन साल आया।
- कल्पना रामानी
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