मुझको तो गुज़रा ज़माना चाहिए।
फिर वही बचपन सुहाना चाहिए।
जिस जगह उनसे मिली पहली दफा,
उस गली का वो मुहाना चाहिए।
तैरती हों दुम हिलातीं मछलियाँ,
वो पुनः पोखर पुराना चाहिए।
चुभ रही आबोहवा शहरी बहुत,
गाँव में इक आशियाना चाहिए।
भीड़ कोलाहल भरा ये कारवाँ,
छोड़ जाने का बहाना चाहिए।
सागरों की रेत से अब जी भरा,
घाट-पनघट, खिलखिलाना चाहिए।
घुट रहा दम बंद पिंजड़ों में खुदा!
व्योम में उड़ता तराना चाहिए।
थम न जाए यह कलम ही ‘कल्पना’
गीत गज़लों का खज़ाना चाहिए।
--------कल्पना रामानी
2 comments:
जिस जगह उनसे मिली पहली दफा,
उस गली का वो मुहाना चाहिए।
...वाह..बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
Bahut khoob Kavita ji.
Mujhko bhi guzrs zamaanaa chihiye.
Post a Comment