एक सूरज सृष्टि में, नव प्राण भरता, है सदा।
तन हृदय से रोग सारे, दूर रखता, है सदा।
एक धरती गोद में, हर जीव को अपनी धरे
एक ही आकाश, उन पर छाँव करता, है सदा।
अनगिनत फूलों का होता, धाम गुलशन एक ही
और तरु कई पाखियों की नीड़ बुनता, है सदा।
कोटि जन के नीर से, तर कंठ करती इक नदी
और सागर में जलज संसार बसता, है सदा।
ज्यों अकेला साज बजकर, बाँधता अनगिन धुनें
त्यों समर्पित मन हजारों, छंद रचता है सदा ।
एक सज्जन गर बढ़ाए, शुभ कदम सद राह पर
कारवाँ फिर सैकड़ों का साथ बढ़ता, है सदा।
आप हैं जग में अकेले, बात मत सोचें कभी
जो अकेला रब उसी के संग रहता है सदा।
-कल्पना रामानी
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