रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी

Wednesday, 20 February 2013

खुशियों का गुर जिसने जाना









खुशियों का गुर जिसने जाना, सदा सुखी इंसान वही।
सेवा के व्रत में रत है जो, जनता का भगवान वही।
 
अक्षर पढ़ जो उच्च कहाते, क्या कहिए उन मूढ़ों को।  
गुण की कीमत जिसने जानी, कहलाता विद्वान वही।
 
रक्त बहाकर दीन जनों का, लोभी धन के घट भरते।
परहित को जो स्वेद बहाए, मानव महज महान वही।
 
आधा बांटें, दुगना पाएँ, नियम नियति के अमिट सदा।
सदपुरुषों ने वचन कहे जो, कहते वेद पुराण वही।
 
यह जग सबका ठौर ठिकाना, कण कण है इक माटी का।
इक ईश्वर से नाता जोड़ें, राम वही रहमान वही। 


-----कल्पना रामानी

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