रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी

Saturday, 16 February 2013

छोड़ा गाँव चले पाँव शहर....




















छोड़ा गाँव, चले पाँव शहर, क्या होगा?
न मिली छाँव, नहीं ठौर न घर, क्या होगा?

सपने देखे महज, चाँद सितारों के ही।
पग से छूट गई, भूमि मगर क्या होगा?
 
बोकर शूल ही आए थे अपने हाथों से।
अब तो फूल भी फेरेंगे नज़र क्या होगा?
 
पिंजरा तोड़ दिया, मुक्त मगर हो न सके।   
खुद ही काट लिए अपने पर, क्या होगा?
 
भूले उनको ही जो, साथ सदा रहते थे।   
साथी शेष है अब मूक नगर, क्या होगा?
 
खोकर राज हुए कैद, सिफर सपनों में।
हक़ ही अब न रहा अपनों पर, क्या होगा?
 
देगा कौन दवा, मोल लिए दर्दों की।
होगा किसकी दुआओं का असर, क्या होगा?

-कल्पना रामानी

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