हरेक
बात पे सौ बार जब विचार करो
किसी
के वादे पे तब दोस्त! ऐतबार करो
ये
जान लो कि नकाबों में हैं छिपे धोखे
शकल
न देखके तीखी अकल की धार करो
जो
तुमपे जाँ भी लुटाने को हो सदा तत्पर
उसी
पे जान-ओ-जिगर अपना भी निसार करो
निभाओ
उनसे जो सदमित्र हैं सदा के लिए
कि
मित्रता की कभी पीठ पर न वार करो
अगर
न तूफां में तुम्हें साथ दे सके दीपक
जलाके
मन का दिया राह में उजार करो
धकेलने
को तुम्हें खाइयों में जग आतुर
जुगत के पुल से सभी खाइयों को पार करो
मनुष्य
हो, ये कभी “कल्पना” न भूलो तुम
मनुष्यता
से ही ऐ दोस्त! सच्चा प्यार करो
-कल्पना रामानी
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