दृग खुले रखना किसी से, प्रीत पल जाने के बाद।
जग नहीं देता सहारा, पग फिसल जाने के बाद।
चार होते ही नयन, कर लो हजारों कोशिशें
त्राण है मुश्किल, नज़र का बाण चल जाने के बाद।
बाँध लो प्रेमिल पलों को, ज़िंदगी भर के लिए।
फिर नहीं आता वही मौसम, निकल जाने के बाद।
प्यार तो होता खरा, पर खार करता है जहाँ
इसलिए मिलते हैं दो दिल, शाम ढल जाने के बाद। सब्र से सींचो हृदय में, प्रेम रूपी बीज को
ख़ुशबुएँ देता रहेगा, फूल-फल जाने के बाद।
प्रेम के अतिरेक का, कैसा मिला है फल उसे
जान पाता है कहाँ, परवाना जल जाने के बाद।
क्यों
डरें हम “कल्पना” जब मीत हर-दम साथ है
हाथ यह छूटेगा अब तो, दम निकल जाने के बाद।
-कल्पना रामानी
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