रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी

Tuesday, 16 September 2014

हर खुशी तुमसे पिता


घर चमन में झिलमिलाती, रोशनी तुमसे पिता
ज़िंदगी में हमने पाई, हर खुशी तुमसे पिता
 
छत्र-छाया में तुम्हारी, हम पले, खेले, बढ़े
इस अँगन में प्रेम की, गंगा बही तुमसे पिता
 
गर्व से चलना सिखाया, तुमने उँगली थामकर 
ज़िंदगी पल-पल पुलक से, है भरी तुमसे पिता
 
याद हैं बचपन की बातें, जागती रातें मृदुल
ज्ञान की हर बात जब, हमने सुनी तुमसे पिता
 
प्रेरणा भयमुक्त जीवन की, सदा हमको मिली
नित नया उत्साह भरती, हर घड़ी तुमसे पिता
 
हाथ माथे है तुम्हारा, हम बड़े हैं खुशनसीब
घर-गृहस्थी में घुली है, माधुरी तुमसे पिता  
 
हर बला से दूर रखता, बल तुम्हारा ही हमें     
कल्पना जग में सुरक्षा, है मिली तुमसे पिता

-कल्पना रामानी

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