रामजी, भारत की भू पर, फिर से आओ एक बार।
रोग दोषों को पुनः, जड़ से मिटाओ एक बार।
फन उठाए फिर रहे हैं, नाग विषधर देश में
विष बने अमृत कुछ ऐसा, शर चलाओ एक बार।
जो मुखौटे ओढ़ फिरते हैं, तुम्हारे नाम के
मन में उनके ‘राम’ अंकित, कर दिखाओ एक बार
पापियों के पाप से, मैली हुई मन्दाकिनी
धनुर्धारी! धार सलिला, की बचाओ एक बार।
भूल बैठीं, त्याग तप को, आजकल की नारियाँ
याद सीता की उन्हें, फिर से दिलाओ एक बार।
सुत हुए साहब विदेशी ,घर में वनवासी पिता
सर्व व्यापी, फिर चमन, वन को बनाओ एक बार।
वेद की गूँजें ऋचाएँ, यज्ञ हों पावन जहाँ
वो अयोध्या सत्य की, फिर से बसाओ एक बार।
-कल्पना रामानी
1 comment:
सुत हुए साहब विदेशी ,घर में वनवासी पिता,
सर्व व्यापी, वन को फिर, गुलशन बनाओ एक बार।
बहुत सुन्दर ग़ज़ल रचना |
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